हर मंजिल की एक पहचान होती है, और हर सफर की एक कहानी होती है । हर खूबसूरत नजारों की याद होती है और हर सफर की एक कहानी होती है। इससे मेरा सफर शुरू हुआ।
घर में शुरू ही था कि कहीं घूमने जाना है और उसमें विंटर वेकेशन आ गए जिसमें एमपी जबलपुर जाने का पक्का हुआ, फिर क्या दूसरे दिन से ही हमारी पैकिंग और शॉपिंग दोनों ही शुरू हो गई। घर में बहुत खुशी का माहौल था और मैं भी बहुत खुश थी, क्योंकि मुझे घूमने जाना बहुत अच्छा लगता है। वह भी जबलपुर जहा बहुत से प्राचीन से मंदिर ,नर्मदा नदी और अनेक जगह है।
जहां मुझे जाने में बहुत उत्सुकता थी।कहते हैं न सफर शुरू होने से पहले ही हम सफर के सपनो में खो जाते हैं,मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। हमारा सफर यवतमाल से शुरू हुआ, हम यवतमाल से वर्धा गए और फिर वर्धा रेलवे स्टेशन पहुंचे, हम 8:30 बजे को ही पहुँच गए और रेल उस दिन भी लेट हमेशा जैसी ,यह स्वाभाविक था पर कुछ था जो अकाल्पनिक था ,वह एक बूढ़ा आदमी रेलवे स्टेशन पर सोया था उसके पास रजाई थी पर वह फिर भी उसे ठंडी लग रही थी, क्योंकि वह दिसंबर महीना था और वह कुछ आखिरी के दिन थे उसे महीने में बहुत ठंडी होती है,मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ।अब मैंने देखा कि हमारे ट्रेन आ रही है वह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा यह रात का सफर था उसके पहले भी मैंने रात में सफर किया है पर यह सफर कुछ अलग ही था।
फिर अब हम पहुंचे जबलपुर, फिर हम गए हमारे रिश्तेदार के घर और वहां एक दिन आराम करके, दूसरे दिन हमारा सफर शुरू हुआ जबलपुर में घूमने का, हम नर्मदा नदी देखने गए जो बहुत सुंदर और लंबी थी और वह बहुत गहरी थी। वह नजारा बहुत सुंदर था ।बहता हुआ पानी ,लंबी गहरी नदी, अलग-अलग सजे हुए जहाज ,पानी में तैरते हुए दिए,और रुके हुए बादल। वह दृश्य बहुत सुंदर था जिससे मैं अभी भी महसूस कर सकती हूं । नर्मदा नदी देखने के बाद हम जहाज के द्वारा नर्मदा के तट से उसे पर गए वह एक गुरुद्वारा था ,जो बहुत सुंदर और भव्य था, उसे देखकर बहुत तस्वीर लेने की इच्छा थी, पर वह तस्वीर लेना माना था ,इसलिए मै तस्वीर नहीं ले पाई।
फिर उसके बाद हम गए हम घर गए और फिर दूसरे दिन नर्मदा नदी का धुआंधार देखने गए जो अत्यधिक सुंदर था , वह बहुत सारे पहाड़ थे और इसके बीच में से नदी बह रहा थी और मैंने वहा छोटा मगरमच्छ भी देखा फिर हम चौंसठ मंदिर गए वह बहुत पुराना और प्राचीन मंदिर था, वह मंदिर की विशेषताएं यह थी कि वहां चौंसठ मूर्ती थी और सारी खंडित भगवान की मूर्तियां जो दीवारों में बनी हुई थी । उसके बाद हम पास के ढाबे पर गए जहां हमने खाना खाया जबलपुर में खाने की कोई खाने की कोई भी चीज बहुत सस्ती और स्वाद भी काफी अच्छा था। जबलपुर का मेरा सफर बहुत यादगार था , यह ही मेरे यह सफर समाप्त हुआ।
– रश्मी संजय पाली
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